Q. झारखण्ड आंदोलन के विभिन्न संगठनों की व्याख्या करें ?
उत्तर - १९वी शताब्दी के प्रारम्भ से छोटानागपुर और संथाल परगना क्षेत्र में अलग अस्तित्व के लिए राजनितिक संघर्ष हुआ | इस कर्म में कई आंदोलन तथा विद्रोह हुए इन सब आंदोलन का मुख्य उदेश्य अपने अस्तित्व की रक्षा करना और जनजातीय दमन एवं शोषण को रोकना आगे चलकर इसका वृहत और संगठित स्वरुप प्रकट हुआ जिसका विवरण आगे देखा गया है |
ढाका छात्र संघ - स्वतंत्र राज्य के लिए सही रूप में आंदोलन का जन्म २०वी शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ |
सेंत कोलम्बस कॉलेज में राजनितिक गतिविधियां प्रारम्भ हुई ,और वह एक आदिवासी संथाल राजनितिक संस्थान का जन्म हुआ इसके प्रेरणा जे -बरथोलमेन थे | उन्होंने कुछ ईसाई मिशनरियों के साथ मिलकर १९१० ई० को ढाका छात्र संघ की स्थापना की गरीब आदिवासी छात्रों की मदद करना संघ का उदेश्य था | इस संगठन की प्रारंभिक गतिविधि सिमित और अस्पष्ट था | यह एक धार्मिक ,सांस्कृतिक और छात्र संगठन के रूप में काम कर रही थी | १९१२ ई० के बाद इस संगठन की एक शाखा रांची में खोली गयी ,जिसके प्रभारी पीटर हावर्ड थे | इस प्रकार से संगठन आदिवासी गरीब छात्रों के लिए बेहतर क्षिक्षा और रोजगार के लिए सफल रहा |
छोटा नागपुर की उन्नति समाज -१९२८ ई०
१९२८ ई ० में ईसाई समाज आदिवासियों ने एंग्लिकन विशप ,रांची के सहयोग से इस समाज का १९२८ ई० में
गठन किया | जनजातीय समाज के आदिवासियों ने सामाजिक और राजनितिक चेतना लाना इस समाज मुख्य उद्देश्य था | १९२७ ई ० में ब्रिटिश सरकार ने १९१९ के कानून में सुधार के लिए साईमन कमीशन का गठन किया | इसके सभी सदस्य अंग्रेज थे ,छोटानागपुर उन्नति समाज के सदस्यों ने साइमन कमीशन से मिलकर सवतंत्र राज्य की मांग की | इस दौर में छोटानागपुर उन्नति समाज बनाने के उद्देश्य कुछ हद तक सफल रहा ,क्योकि अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध एक राजनितिक आंदोलन का सूत्रपात हुआ |
किसान सभा - छोटानागपुर उन्नति समाज के कुछ नेता इसके शहरी और मध्यवर्गीय तरफदारी ने नाखुश थे |
वे इसमें समाज के सभी वर्गो के लोगों को शामिल करना चाहते थे | पॉल डायलऔर थेबेल उराँव जैसे नेताओं ने १९१३ ई ० में किसान सभा की स्थापना की | इस सभा के विचार क्रन्तिकारी थे क्योकि अपनी उद्देश्य के पूर्ति हेतु उग्र कार्यो को करने में विश्वास करता था |
इस प्रकार किसान सभा का स्वरुप नेशनल कांग्रेस के उग्रवादी विचारधारा वाले गट से मिलता जुलता था |
आदिवासी महा सभा - १९३८ -१९३९ में इग्नेश बेक के पर्यासो से आदिवासी महासभा का जन्म हुआ | छोटानागपुर उन्नति समाज और अन्य छोटे बड़े संगठनों के नेताओ ने मिलकर इस महासभा को बुनियाद रखी | सबो ने अपने -अपने संगठनों का इस महासभा में विलय कर दिया | भारत सर्कार अधिनियम १९३५ ई ० के प्रावधानों के अंतर्गत जब १९३७ ई ० में जब चुनाव हुए तो उसमे कांग्रेस को बहुमत मिला और मुस्लिम लीग २०सिटो पर विजयी हुआ | इस राजनितिक घटना ने आदिवासी नेताओ को यह सोचने पर मजबपर कर दिया की बदलते परिवेश में उनकी क्या राजनितिक भूमिका होनी चाहिए | इस कारण से ईसाई और गैर ईसाई आदिवासी एकजुट हुए और आदिवासी महासभा एक वृहत राजनितिक मंच बन गया | मार्च अप्रैल १९३९ ई० में जयपाल सिंह ने इस महासभा में योगदान दिया और बाद में इसके अध्यक्ष बन गए | उनके विचार और व्यवहार आक्रमक थें |
जिसके कारण अन्य आदिवासी नेता नरमपंथी दिखने लगे | जयपाल सिंह ने यह घोषणा की कि झारखण्ड के आदिवासियों का क्षेत्र है इसलिए गैर आदिवासी शासको का इस प्रदेश में कोई स्थान नहीं है | आदिवासी महा सभा सिर्फ स्वशासन नहीं बल्कि बिहार से अलग अस्तित्व प्राप्त करने लगी |
झारखण्ड पार्टी -जमशेदपुर में १९५० ई ० के आदिवासी महासभा के अधिवेशन में झारखण्ड पार्टी का स्वीजन हुआ | इसका नाम बदलने का मुख्य कारन नए संगठन में गैर आदिवासियों को शामिल करना था | आज़ादी के बाद एकीकृत बिहार के समय प्रथम विधान सभा के चुनाव में झारखण्ड पार्टी के ३२ विधायक चुने गए | अलग झारखण्ड राज्य इस दल का एक प्रमुख मुद्दा बन गया | १९५३ी ० में भारत सर्कार द्वारा गठित राज्य पुर्नगठन आयोग के समक्ष का प्रस्ताव दिया ,एसएस अगल झारखण्ड के जिला पश्चिम बंगाल के ३ जिलों उड़ीसा और के शामिल ह आयोग सामने झारखण्ड पार्टी अलग राज्य राज्य का औचित्य नहीं स्पष्ट कर सकी |