
स्वराज्य दल 1 जनवरी 1923 ई०-:
असहयोग आंदोलन गाँधी जी ने वापस ले लिया तो कुछ नेताओं का विचार था की असहयोग आंदोलन को वापस नहीं लिया जाना चाहिए | स्थगन एवं महात्मा गाँधी के छः वर्ष के लिए जेल चले जाने से राष्ट्रीय आंदोलन तिथिल पड गया | लोगो के सामने कोई निश्चित कार्यक्रम नहीं था खिलाफत आंदोलन के कारण जो हिन्दू-मुस्लिम एकता कायम हुई थी ,वह भी अब ख़त्म हो चुकी थी | सरकार का दमन चक्र बड़ी तेजी से चल रहा था | ऐसी स्थिति में में कांग्रेस के कुछ नेताओ ने कौंसिलों में प्रवेश कर अपनी असहयोग नीति से सफलता पूर्वक विरोध करने की नीति अपनायी | श्री आर दास तथा श्री मोतीलाल नेहरू ने खुलेआम नए संविधान को सुधारने या अंत करने के उद्देश्य से कौंसिल में प्रवेश करना आवश्यक बतलाया | परन्तु कांग्रेस की असहयोग समिति ने इन सुझावों का विरोध किया एवं कौंसिल में प्रवेश करना देश के लिए अहितकर बतलाया | इस प्रकार ऐसा प्रतीत होने लगा की 1907 ई० की सूरत फ़ूट की तरह 1922 ई० ,में भी कांग्रेस दो दलों में बट जाएगी | उस समय कांग्रेस में अपरिवतर्नवादियों का बहुमत था | श्री चितरंजन दास ने कांग्रेस के सभापति पद से तथा पं० मोतीलाल नेहरू ने महामंत्री के पद से त्याग पत्र दे दिया | एवं 1 जनवरी 1923 ई० में भी स्वराज्य पार्टी की स्थापना की |जिसका अध्यक्ष चितरंजन दास बनाये गये थे | इलाहाबाद में
स्वराज्य पार्टी का प्रथम अधिवेशन हुआ जिसमें उसका संविधान एवं कार्यक्रम निर्धारित हुआ | सितम्बर ,1923 ई० में मौलाना अबुल कलाम के सभापतित्व में दिल्ली में कांग्रेस की एक विशेष अधिवेशन हुआ ,जिसमे कांग्रेस को यह स्वतंत्रता दी गयी |
वे चुनाव में भाग ले सकते है इसी समय 1924 ई० में अस्वस्थता के कारण महात्मा गाँधी जी जेल से रिहा कर दिया गया | उन्होंने भी स्वराज्य पार्टी को स्वीकृत कर दिया |हरिजनों द्वारा ,हिन्दू-मुस्लिम एकता प्रयत्न आदि को स्वीकार कर लिया | इस प्रकार ,स्वराज्य दाल कांग्रेस का एक राजनीति अंग बन गया जो संसदीय कार्यों में भाग लेने लगा | स्वराज्य वादियों के उदेश्य भारत को स्वराज्य दिलाना ,एवं असहयोग आंदोलन सफल बनाना ,सरकारी निति का विरोध करना | तथा कार्यो पर अड़ंगा डालना | स्वराज्य पार्टी ने तो कौंसिल में अच्छा काम किया ,परन्तु यह सरकार को अपने कार्यो से विचलित नहीं क्र सकी | 1926 ई० के अंत तक स्वराज्य दल की शक्ति समाप्त हो गयी |
इसके अनेक कारन थे |
1.स्वराज्य दल ने सरकार के साथ असहयोग की नीति अपनायी थी |
2. सरकार के कार्यो पर अड़ंगे डेल गए थे |
3 . हिन्दू -मुस्लिम दंगा होने के कारण स्वराज्य दल की एकता विनष्ट हो गयी |
4 . स्वराज्य दल के महारथी श्री चितरंजन दास का 1925 ई० मे देहांत हो गया |
5 .स्वराज्य दल के सभी सदस्य असहयोग नीति के विरोधी थे |
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