चंगेज खां ( मंगोल )
मंगोल चीन के उत्तर गोबी की मरुभूमि में रहनेवाले अद्धसभ्य जाति के लोग थे | वे पशुपालन थे और कठिन परिश्रम करते थे | उनमे नैतिकता नाम का कोई चीज नहीं थी | घुड़सवारी,शिकार ,और युद्ध उनके प्रिय व्यसन
थे | वे कई कबीलो में बाटे हुए थे जो परस्पर युद्ध करते रहते थे | मंगोलों को खून की प्यासा मन जाता था | मंगोलो के बिच 12 वी शताब्दी में एक नेता का जन्म हुआ जिसेचंगेज खां कहा जाता है | चंगेज खां की वास्तविक नाम तेमुचिन था | उसके पिता का नाम येसूगाई बहादुर था | येससूगाई बहादुर ने तथा कठिन पिता की शीघ्र ही मृत्यु]हो गयी और फलस्वरूप तेमुचिन का बाल्य -जीवन संकटग्रस्त हो गया | मजदूरी उसके परिवार के जीवन का आधार थी | मजदूरी तेमुचिन को रास नहीं आयी | कहा जाता है की वह रक्तरंजित हाथों को लेकर पैदा हुआ था और उसने असभ्य एवं आलसी मंगोलो को संगठित कर एक विशाल मंगोल साम्राज्य की नींव डाली थी | खां ने चीन,रूस,के दक्षिण भाग,मध्य भाग,टर्की,अफगानिस्तान की विजय कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना कर ली थी | और समाज ,न्याय ,एवं दण्ड -विधान को लागु किया | तुर्किस्तान का ख्वारिज्म साम्राज्य भी मंगोल नेता के आक्रमण का शिकार बना | चंगेज खां ने गजनी और पेशावर पर अधिकार कर लिया था | ख्वारिज्म वंश के शासक अलाउद्दीन मुहम्मद को कैसिपियन समुन्द्र की ओर खदेड़ दिया ,जहाँ 1220 ई ० में उसकी मृत्यु हो गयी | अलाउद्दीन का उत्तराधिकारी जलाउद्दीन मंगवर्नी हुआ जो मंगोलो के आक्रमण से भयभीत होकर गजनी चला गया | चंगेज नेउसका पीछा किया और सिंधु नदी के किनारे जलाउद्दीन को पराजित कर दिया | जलाउद्दीन मंगवर्नी का परिवार सिंधु नदी के पार करने में डूब कर मर गया | किन्तु स्वयं जलाउद्दीन मंगवर्नी अपनी प्राण की रक्षा करने में सफल रहा | जलाउद्दीन मंगवर्नी ने भारतीय सीमा में प्रवेश कर सुल्तान इल्तुतमिश से सहायता की याचना की | इल्तुतमिश ने शक्तिशाली चंगेज खां कुछ दिनों तक ठहरकर जलालुद्दीन की गतिविधियों की देखभाल करता रहा और अंत में सेना का एक भाग जलालुद्दीन के पीछे छोड़कर स्वयं लौट गया | इस प्रकार चंगेज के संभावित आक्रमण से नवजात तुर्क -साम्राज्य को बचाकर इल्तुतमिश ने कुशल कूटनीतिज्ञ का परिचय दिया | जलालुद्दीन मंगवर्नी ने सुल्तान इल्तुतमिश से निराश होकर खोक्खर सरदास से मित्रता कर ली | और एक नए सेना तैयार कर नमक की पहाड़ियो को लुटा | उसने नसीरुद्दीन कुबाचा के राज्य पर आक्रमण कर दिया और उसे मुल्तान भागने के लिए विवश कर दिया | अन्हिलवाड़ पर भी मंगवर्नी का आक्रमण हुआ परन्तु मंगोल सेना का पीछा करने के कारण वह 1224 ई ० में भारत छोड़कर मकरान के रास्ते से ईरान चला गया |
सीमा की सुरक्षा
मंगोलो का दूसरा आक्रमण - 1247 ई० में मंगोलो ने सली बहादुर के नेतृत्व में मुल्तान पर दूसरा आक्रमण हुआ | एक लाख दीनार हर्जाना वसूलने के बाद असली बहादुर ने लाहौर को लुटा और बहुत धन प्राप्त कर वापस लौट गया | सुल्तान नसीरुद्दीन के समय कई बार मंगोलो के आक्रमण हुए |नसीरुद्दीन समझौतावादी था | उसने मंगोलो के साथ समझौता कर के मित्रता का सम्बन्ध रखकर मंगोल नेता हलाकू के साथ राजदूतों का आदान प्रदान किया | किन्तु 1250 ई० तक मुल्तान ,सिंध और पश्चिमी पंजाब मंगोलों के कब्जे में ही रहे | सुल्तान बनने के बाद बलबन ने उतर-पश्चिम सीमा -क्षेत्र की सुरक्षा के लिए विशेष सैनिकों की व्यवस्था की | बलबन ने सीमा की रक्षा के लिए किलों की एक कतार बना दी | और उसमे प्रशिक्षित एवं योग्य सरदारों के अधीन स्थायी सेना रखी जाने लगी | प्रारम्भ में सीमा-क्षेत्र का राज्य पाल शेर खां को नियुक्त किया गया | जो पूर्व में मंगोलो के साथ सफलतापूर्वक युद्ध कर चुका था और कई बार उनके दांत खट्टे कर चुका था | शेर खां में यथानाम गुण था और जबतक सीमा की सुरक्षा का दायित्व उस पर रहा ,मंगोलो ने आक्रमण नहीं किए | इसका एक कारण यह भी था मंगोल नेता हलाकू मिस्र में पराजित हो चूका था और पराजय के बाद मंगोल आक्रमण की भूषणता कुछ घट गयी |
परन्तु शेर खां के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर बलबन स्वयं आंकित हो उठा और उसने संदेह में विश देकर शेर खां की हत्या करवा दी | शेर खां सीमा का दायित्व बलबन ने अपने पुत्रों के हाथ में सौप दिया | लाहौर ,मुल्तान और दीपालपुर का क्षेत्र शहजादा मुहम्मद अधीन रहा तथा सुनाम समाना और उच का क्षेत्र शहजादा बकरा के हाथ में दे दिया गया | स्थानीय सेना के अतिरिक्त 18 हजार अनुभवी पाठान अश्वारोही सेना सीमा की सुरक्षा के लिए तैनात कर दी गयी | बलबन की सुरक्षा -व्यवस्था के कारण मंगोलों के कई आक्रमण विफल रहे तथा उन्हें आगे बढ़ने का अवसर नहीं मिला | 1279 ई० में मंगोलों ने सुमन को राउंड डाला किन्तु राजकुमार मुहम्मद ,बुगरा खां और दिल्ली के सैनिको ने मंगोलों के आक्रमण को विफल कर डाला | पुनः 1285 ई० को तैमूर खां के नेतृत्व में मंगोलों ने लाहौर और दीपालपुर पर आक्रमण कर दिया | 1286 ई० में मंगोलो के साथ युद्ध करते हुए शहजादा मुहम्मद मारा गया |
पुत्र शोक के बावजूद बलबन ने मंगोलो को आगे नही बढ़ने दिया |
अलाउद्दीन के समय मंगोलो के कई बार भीषण आक्रमण हुए | अलाउद्दीन के राजीरोहण के कुछ महीने बाद आक्रमण जफ़र खां ने विफल कर दिया | 1297 ई ० में कादर के नेतृत्व में दुसरा आक्रमण हुआ ,कादर के साथ लाख की सेना थी | किन्तु जफ़र खां और उलगू खां की सम्मिलित सेना ने जालंधर के पास मंगोलो को बुरी तरह से पराजित कर दिया और बीस हजार मंगोलो को मार डाला गया | लगभग 17 हजार मंगोलों को बंदी बना लिया गया और उन्हें दिल्ली भेज दिया गया जिनमे से उनके नेता तथा स्त्रियाँ और बच्चे भी शामिल थे | 1299 ई० में सल्दी के नेतृत्व में जफ़र खां ने मंगोलो को फिर पराजित कर दिया | परन्तु पराजय के बाद भी मंगोल आक्रमण करने से बाज नहीं आये | मंगोलो का एक खतरनाक आक्रमण 1299 ई ० में कुतलुग ख्वाजा के नेतृत्व में हुआ | मंगोलो ने सल्दी का बदला लेने के लिए पूरी तैयारी कर ली थी | वे रास्ते में समय नहीं खोकर सीधे दिल्ली के निकट पहुंच गये | किलि के मैदान में अलाउद्दीन और जफ़र खां ने मंगोलो का सामना किया तथा मंगोलो को वापस भेज दिया | इस युद्ध में जफ़र खां मारा गया इस विफलता के बाद मंगोलो ने तीन वर्षो तक कोई आक्रमण किया | चित्तौड़ की विजय और तैलगना ने अलाउद्दीन को व्यस्त पाकर मंगोलो ने 1303 ई ० में तार्गी के नेतृत्व में दिल्ली पर आक्रमण किया | तार्ग़ी
के पास १२०००० सेना थी | अलाउद्दीन को सीरी के किले में शरण लेनी पड़ी ,परन्तु मंगोलो ने लूट -मार और दो महीने की घेराबंदी के बाद अपनी सेना वापस हटा ली | मंगोलो के ासक्रमण के भयंकर स्वरुप को देखते हुए अलाउद्दीन ने सीरी के दुर्ग को सुढृढ़ कर लिया और उतर -पश्चिम सीमा क्षेत्रो में पुराने दुर्गो की मरम्मत तथा कई नए दुर्गो का निर्माण किया | सीमा की रक्षा के लिए सैनिकों की संख्या में वृद्धि की गयी तथा एक अलग सूबेदार नियुक्त किया गया |
मंगोलो के आक्रमण का प्रभाव - मंगोलो के निरन्तर आक्रमण ने दिल्ली सल्तनत की आंतरिक एवं बाह्य नीति को प्रभावित किया | उतर -पश्चिम सीमा क्षेत्र से उत्पन्न कटरा का सामना करने के लिए दिल्ली के प्रत्येक सुल्तान को अपने राजस्व का एक बहुत बड़ा भाग मंगोलो के आक्रमण का मुकाबला करने के लिए खर्च करना पड़ता था सीमा की सुरक्षा के लिए प्रत्येक दुर्ग में स्थायी एवं प्रशिक्षित सैनिको को रखना पड़ा | धन के साथ आंतरिक विद्रोह पर भी दिल्ली को सुल्तानों को नियंत्रण रखना पड़ा |