दिल्ली सल्तनत की स्थापना 1206 ई० में कुतुबुद्दीन ऐबक द्वारा की गई थी | 1206 -1506 ई ० के मध्य दिल्ली पर क्रमश आदि तुर्को गुलामवंश ,खिजलियों ,तुगलकों ,सैय्यदों और लोदियो ने राज्य किया | लोदियों पतन के साथ ही भारत में मुगलवंश की सत्ता स्थापित हुई | दिल्ली सल्तनत के करीब तीन शताब्दियों के राज्य का एक नया स्वरुप सामने आया | राजवंशों की उत्थान -पतन हुआ ,प्रशासनिक ,सामाजिक ,धार्मिक एवं आर्थिक व्यवस्था में समयानुकूल परिवर्तन किये गए | कला ,साहित्य का विकास हुआ | इसी अवधि के दौरान सूफी मत एवं भक्ति की भावना भी प्रबल हुई | दिल्ली सल्तनत सम्पूर्ण इतिहास सुविधानुसार विभिन्न चरणों में विभक्त किया जा सकता है | आदि तुर्को का शासन सल्तनत की स्थापना एवं इसके सुदृढ़िकरण का काल था | खिजलीवंश योगदान साम्राज्यवादी विकास के संदर्भ में महत्वपूर्ण है | तुगलकों के समय अनेक क्षेत्रीय राज्यों का उदय आरंभ\हुआ जिसने संतलात की सत्ता को कमजोर करना आरंभ कर दिया |
सैयदों के समय में सल्तनत के पतन की प्रक्रिया जारी रही लोदियों के शसन काल में सल्तनत का पतन पूरा हो गया | सल्तनत के पतन के बीज इसकी संरचना में ही छिपे हुए थे |
अनेक राजनितिक ,प्रशासनिक ,सैनिक ,धार्मिक ,आर्थिक ,एवं सामाजिक कारणों के सम्मिश्रम ने सल्तनत को धराशायी कर दिया |
सल्तनत के पतन के कारण -दिल्ली पतन के कई कारण उत्तरदायी थे इनके मुख्य कारण निम्नलिखित थे :-
- सल्तनत का स्वरुप :- दिल्ली के पतन के लिए उत्तरदायी कारणों में राजनितिक कारण का विशिष्ट योगदान है |
- सल्तनत के स्वरुप एवं इसके संगठन में ही पतन के बीज बोए गए थे |
- दिल्ली के सुल्तानों ने एक स्वेच्छाचारी और निरंकुश राजतंत्र की स्थापना की थी |
- दिल्ली के शासन सुल्तान और अमीरो तथा सैनिक पदाधिकारीयों के हाथों में ही केंद्रीत रहा |
- सल्तनत में जनसधारन से इसका संपर्क नहीं के बराबर था |
- सल्तनत सिर्फ योग्य शासको के समय में ही चल सकती थी |
- सल्तनत के दुर्बल और अयोग्य शासको के समय में सल्तनत की शक्ति कमजोर होती गई |
- सुल्तानों की चारित्रिक विशेषताओं उनका विलासी और आयोग्य होना ,उनमे प्रशासनिक गुणों का अभाव ने भी स्तिथि को बदतर बना दिया |
उत्तराधिकार के नियम का अभाव -दिल्ली के सुल्तानों की एक ही बड़ी गलती थी की उनलोगो ने उत्तरधिकारी के नियम निश्चित नहीं किए | सुल्तान की मृत्यु के बाद गद्दी का उत्तराधिकारी वही व्यक्ति होता था जिन्हे अमीरो और सनिकक पदाधिकारियों का समर्थन प्राप्त हो तथा जो तलवार के धनि हो | कुछ सुल्तान अपने जीवनकाल में ही अपने उत्तरधिकारी को मनोनीत भी करते थे ,परन्तु सर्वदा उनकी इच्छा का पालन नहीं किया जाता था | इस परम्परा के परिणाम भयंकर और घातक हुए | इसने गृहयुध्द ,दरबारी षडयंत्रों एवं गुटबाजी ,रक्तपात और अमोरो तथा सैनिक पदाधिकारियों की महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा दिया | इस प्रक्रिया का सल्तनत पर घातक प्रभाव पड़ा |
ुरताधिकार का नियम निश्चित नहीं होने से वंश सम्बन्ध भी गौण हो गए तथा बहुधा गद्दी का फैसला तलवार के बल पर किया गया | परिणाम स्वरुप राजनितिक अस्थिरता सदैव बानी रही | के अंतराल पर सत्ता एवं राजवंश
के परिवर्तन होने से सल्तनत को जनता एवं अधिकारी वर्ग की पूर्ण स्वामिभक्ति भी प्राप्त नहीं हुई |
साथ ही सत्ता परिवर्तन के साथ ही नई नीतिया लागू कर दी जाती थीं | अतः प्रशासनिक नीतियों का स्थायी और व्यापक प्रभाव नहीं पड सका | फलतः सल्तनत अंदर ही अंदर खोखली होती गई |
- सैन्य व्यवस्था - दिल्ली सल्तनत की स्थापना शक्ति के बल पर की गई थी और इसे शक्ति के बल पर ही बनाए रखा जा सकता था | योग्य सुल्तानों ने सेना के महत्व को ध्यान में रखते हुए इसके गठन एवं रख -रखाव पर विशेष ध्यान दिया तथा इसकी सहायता से एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की | दुर्भाग्य वश इसकी मूल संचरना दोषपूर्ण थी | इक्तादारी पार्था एवं सैनिक पदों को वंशानुगत बनाने की निति ने अंततः सेना को दुर्बल और अक्षम बना दिया गया | सुल्तान की अपनी कोई स्थायी और केंद्रीय सेना नहीं थी ,बल्कि सैनिक अभियानों और विद्रोहों के दमन के लिए उसे अपने अमीरो जागीदारो और प्रांतीय अधिकारियो की सेना पर निर्भर रहना पड़ता था | ऐसी सेना सुल्तान के प्रति स्वमीभगत न होकर अपने मालिक के प्रति स्वामिभक्त रहती थी | साथ ही साथ स्थानीय सेना बहुधा भाड़े पर अयोग्य सैनिको की भी भर्ती कर ली जाती थी | खिजली वंश के बाद सेना की स्थिति लगातार बिगड़ती गयी | सल्तनत के सेना में एकरूपता की भी अभाव था |
2 . प्रशासनिक व्यवस्था - दिल्ली के सुल्तानों के कुछ अपवादों को छोड़कर प्रशासन की ओर पूरा ध्यान नहीं दिया | उनका अधिकांश समय विद्रोह के दमन ,साम्राज्य विस्तार अथवाअपनी गद्दी की सुरक्षा तथा भोग विलास में व्यतीत हुआ | जिन सुल्तानों ने प्रशासनिक व्यवस्था स्थापित भी की वो उनकी मृत्यु के साथ ही समाप्त हो गए | उनका व्यापक और स्थाई प्रभाव नहीं पद सका | दुर्बल सुल्तानों के समय में ,विशेषकर सल्तनत के उत्तराद्र्ध में प्रशासनिक व्यवस्था बिलकुल ही चौपट हो गई | इसका सल्तनत के स्थायित्व पर बुरा असर पड़ा |
3 . प्रतिरोध एवं विद्रोह - दिल्ली सल्तनत के पतन का एक प्रमुख कारण था की ,राजपूतो ,सामंतो ,जागीरदारों ,अमीरो,एवं प्रतिय अधिकारियो के विद्रोह इनका कारण दिल्ली की गद्दी पर दुर्बल शासको को होना तथा इनकी व्यक्तिगत महत्वकांक्षाए थी | इसी प्रकार प्रत्येक सुल्तान को शासन बनते ही अपने प्रतिद्वदियों एवं अन्य महत्वकांक्षी व्यक्तियो के विद्रोह का सामना करना पड़ता था | ऐसी परिक्रिया के दौरान जौनपुर ,बंगाल ,गुजरात ,मालवा ,एवं दक्षिण में स्वत्रंत क्षेत्रीय राज्यों का उदय हुआ |
4 . धर्म का राजनीति पर प्रभाव -दिल्ली के सुल्तानों ने इस्लाम धर्म की व्यवस्था के अनुरोध ही शासन करने का प्रयास किया | अतः शासन और राजनीति पर उलेमा का प्रभाव स्थापित हो गया | यह प्रवृति तुगलक काल में अधिक स्पष्ट रूप से उभर कर सामने आई | इस वर्ग के प्रभाव में आकर उन्हें प्रसन्न करने लिए अनेक सुल्तानों ने धर्माधता की नीति अपनाई | | इसकी व्यापक प्रतिक्रिया हिन्दुओं में हुई |
5 . सामाजिक विभेद - सल्तनत काल में सामाजिक एकता का स्थान सामाजिक विभेद ने ले लिया | समाज में स्पष्टतः दो वर्ग थे हिन्दू और मुस्लिम |
इनमे आपसी सामजस्य के बावजूद दुराव की भावना थी | मुस्लिम अपने को शासक वर्ग का मानने लगे और हिन्दू शासित | कुछ सुलतानो की धर्माधता की नीति ने दोनों वर्गो के विभेद को और गहरा बना दिया | और आपसी में बहुत तनाव का सामना करते थे | और कोई सुल्तान ने युद्ध में बड़ा हिस्सा सैनिको को ही मिलता था सुल्तानों में से अधिकांश ने आर्थिक सुधारो ,कृषि ,उद्योग ,व्यापार की उन्न्नति तथा आमदनी बढ़ने के लिए कोई प्रयास नहीं किये थे | इस प्रकार से दिल्ली सल्तनत के पतन होने का मुख्य कारण था |