१९ वीं शताब्दी में झारखण्ड में रेलवे के विकास ब्रिटिश काल से पूर्व हाथी ,बैल ,पालकी ,डोली ,घोड़ागाड़ी ,और बैलगाड़ी का माल ढोने अथवा सवारियों के ढोने के रूप में उपयोग किया जाता था | कंपनी काल के अंत में रांची शहर में दो पुरुषों द्वारा चालित हाथ रिक्शा आया | रांची से बुंडू,खूंटी,तमाड़ ,तक ऊंटगाड़ी चलती थी |
रांची से पुरुलिया तक ११४ किलोमीटर की दुरी पुश पुश द्वारा २० घंटे में तय की जाती थी | साइकिलों को तो बहुत अच्छा खासा प्रचार हुआ ,लम्बी सफर के लिए बसों को चलाया गया | झारखण्ड में रेल लाइनो के कम होने के कारण लारियाँ अधिक चलती थी | कहीं -कंही रेलगाड़ियों की प्रतिद्वदिता में भी लारियाँ चलाई जाती थी |
रांची तथा हज़ारीबाग़ के बिच पहली बस १९२० ई० में चली | ८२ किमी की दुरी ६ घंटे में तय होती थी | १९३० ई० के बाद मेट्रो तथा ट्रकों का चलना शुरू हुआ | १९वी सदी के उत्तरार्ध में देश के अन्य भागो की तरह झारखण्ड में भी रेल-लाइने बिछने लगी | धनबाद क्षेत्र की लाइने सबसे पहले बिछी | प्रशासकीय आवश्यकताओं ,फौजो के आवगमन ,व्यावसायिक लाभ तथा कुछ लोक-कल्याण की के लिए निर्माण किया गया | १९८७-१९०० ई० में पलामू में जब भयानक अकाल पड़ा और बिहार से अन्न मंगाने की आवश्यकता पड़ी |
१९०२ई० में वरुण से राजहरा तक रेल -लाइन बिछाई गयी ,१९२९ ई० में यह रेल -लाइन बरकाकाना तक बिछाई गयी | रांची पुरुलिया रेल लाइन का निर्माण १९०५ ई० हुआ | बंगाल के गवर्नर सर एंडु फ़्रेज़र ने १४ नवम्वर ,१९०७ ई० को इसका उद्घाटन किया | १९११ ई० में रांची -लोहरदगा रेल लाइन बनी सार्वजनिक उपयोग के लिए इसे १९१३ ई० में खोला गया | १९४७ ई० से पहले झारखण्ड में तीन कंपनियों की गाड़िया चलती थी |
झारखण्ड- में केवल ४ बड़ी स्टेशन थे -ब्रेकर ,भांबड़ ,गोमो और हज़ारीबाग़ रोड | मधुपुर से एक लाइन जगदीशपुर और महेश मुंडा होकर गिरिडीह गयी | इसकी लम्बाई ३७ किमी० थी ,धनबाद कोयला क्षेत्र में कई छोटी -छोटी लाइन इधर - उधर फैली हुई थी |
एक लाइन धनबाद से कतरासगढ़ ,फ्लारितंड और जमुनियांटांड होकर चंद्रपुरा जंकशन तक तथा दूसरी धनबाद से झरिया और गोदना होकर पाथरडीह तक गयी थी | प्रधान खता को पाथरडीही से से और मतरी को कतरासगढ़ से जोड़ा गया था | यहां पर बी० एन० आर० की भी छोटी मोटी लाइने फैली हुई थी | ग्रैड कार्ड लाइन के गोमो जक्शन से बरकाकाना मोटी लाइने फैली हुई थी |
बंगाल नागपुर रेलवे -की झारखण्ड में पुरुलिया से रांची और रांची से लोहरदगा जानेवाली लाइन छोटी लाइन थी | शेष लेने बड़ी थी हावड़ा से जो लाइन मुंबई जाती थी | वह सिंहभूम से होकर चाकुलिया स्टेशन के निकट झारखण्ड में प्रवेश करती थी | सरायकेला के पास झारखण्ड से बाहर हो जाती थी ,यह दुरी प्रायः १९० किमी० की थी | जमशेदपुर से एक लाइन दक्षिण की और बादम पहाड़ तक गयी थी और सरायकेला पास झारखण्ड से बाहर हो जाती थी ,३८ किमी ० की यह झारखण्ड के अंदर थी |
इसकी लम्बाई १००किमी ० थी इस लाइन पर चाईबासा ,झींकपानी ,नोआमुंडी तथा बरजामदा के प्रमुख स्टेशन थे | आसनसोल से दक्षिण -पश्चिम की ओर आनेवाली लाइन मधुकुन्दा के पास झारखण्ड में प्रवेश कर आद्रा ,पुरुलिया और चांडिल होकर सिनी जंकशन से मुंबई जानेवाली लाइन में मिल जाती थी |
इसकी लम्बाई १४० किमी ० थी इस लाइन पर पुरुलिया ,चांडिल और सोनी प्रमुख स्टेशन थे | चांडिल से एक स्टेशन जमशेदपुर गयी थी | खड़कपुर से उतर-पश्चिम की और जाने वाली रेलवे लाइन इन्द्रविल के पास झारखण्ड में प्रवेश कर गोमो तक खुली थी | इसकी लम्बाई ८४ किमी ० थी | यह लाइन कोयला खानों के कारण खुली थी |
चांडिल से एक लाइन उत्तर की ओर मूर्ति जंक्शन होकर बड़काकाना तक गयी थी ,जिसकी लम्बाई ११२ किमी ० थी |