पालो की राजनीतिक एवं सांस्कृति उपलब्धिया
पालवंश के शाशकों ने अपने 400 वर्षो के शासन की अवधि में सांस्कृतिक विकास को भी प्रश्रय दिया | एक बड़ा साम्राज्य स्थापित करने के अतिरिक्त पाल-राजाओं ने प्रशासनिक व्यवस्था कायम की तथा शिक्षा,साहित्य,धर्म एवं कला के विकास को प्रभावित किया |
सामाजिक जीवन
पाल अभिलेखों,स्मृतिग्रंथों तथा अन्य साहित्यिक स्रोतों से पालकालीन सामाजिक जीवन पर प्रकाश पड़ता है | यधपि पाल शासको ने बौद्धधर्म को संरक्षण दिया ,तथापि वर्ग और जाति व्यवस्था को बनाये रखा | समाज अनेक जातियों और उपजातियो में विभक्त था | बृहद्धर्मपुराण में ब्राह्मणो के अतिरिक्त 36 गैर-ब्राह्मण जातियों का उल्लेख शूद्र वर्ग के अंतर्गत किया गया है | पालकालीन समाज में विवाह की संस्था पूरी तरह विकसित थी | सामान्यतः लड़कियों का विवाह वयस्क होने के पूर्व ही होता था | विवाह तय करते समय गोत्र और परिवार का ध्यान रखा जाता था | बहुविवाह की पार्था प्रचलित थी | महिलाओं की स्थिति अच्छी परतीत होती है | कुछ महिलाओं शिक्षा प्राप्त करती थी | जीमूतवाहन विधवाओं को सम्पति का उत्तराधिकारी मानता है | पर्दाप्रथा अधिक प्रचलित,परन्तु सतीप्रथा प्रचलित थी | विधवाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी | समाज में गणिकांए ,महिलाएं,दसिया ,और देवदासी भी थी | सामिष और निरामिष भोजन का प्रचलन था | ब्राह्मण भी मांस-मछली कहते थे पुरुष-महिलाये दोनों आभूषण तथा जूता पहनने और छटा रखने प्रचलन था,शतरंज और पास का खेल लोकप्रिय था नृत्य ,संगीत,नाटक,मनोरंजन के साधन थे सवारी के लिए बैलगाड़ी,घोड़ागाड़ी,हाथी और नाव का व्यवहार किया जाता था | समय-समय पर उत्सव भी मनाये जाते थे,जैसे-दुर्गा,गणेश,और अन्य देवताओं का पूजनोत्सव ,होलाम, (होली)काममहोत्सव इत्यादि | पालकालीन समज पर सामंती व्यवस्था के प्रभाव भी दिखाई देते हैं |
आर्थिक व्यवस्था
पालकालीन अर्थव्यवस्था मुख्यतः ग्रामीण थी | अधिकांश जनसँख्या गावों में रहती थी | गावों में घरो के अतिरिक्त खेत ,गोचर,तालाब,भी होते थे | यधपि साहित्यिक स्रोतों में रमावती और कुछ अन्य नगरों का उल्लेख मिलता है |
| परन्तु तत्कालीन सामंती अर्थव्यवस्था रखने पर नगरों का आर्थिक महत्व कम ही प्रतीत होता है | इस समय के नगर प्रशासनिक केंद्र अथवा सैनिक शिविर थे | तत्कालीन सामती अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखने पर नगरों आर्थिक महत्व कम ही प्रतीत होता है | तत्कालीन व्यवस्था के अनुरूप कृषि पर प्रायप्त बल दिया गया था धान ,गन्ना,कपास,सुपारी,पान,आम,की खेती मुख्य रूप से होती थी | उसका विवरण रखा जाता था | और ब्राह्मणो,धार्मिक,संस्थानों ,मंदिर,और बौद्ध विहारों नागरिक और सैनिक पदाधिकारियों को कर -मुक्त भूमि दान में दी जाती थी | अभिलेखों में भूमि दान का उल्लेख मिलता है | राज्य की आम्दानी का मुख्य स्रोत्र भूमि कर ही था | भूमि से अनेक प्रकार के कर लिए जाते थे,जैसे-उपरीकर,भाग १/६ भोग,कर इत्यादि | इनके अतिरिक्त हिरण्य ,शुल्क,दस अपराध, तरह से राज्य की आमदनी होती थी | राजस्व व्यवस्था से संबंद्ध अनेक पदाधिकारियों का उल्लेख मिलता है ,जैसे-राजस्थानियापारिक ,विषयपति,ग्रामपति,दसअपराधिक ,क्षेत्रपाल इत्यादि | इनका मुख्य कार्य भूमि की देखभाल और राजस्व की वसूली था |
पालयुगीन बंगाल में उद्योग-धंधो विकास हुआ | वस्त्र उद्योग विकसित स्थिति में था |
9 वी शताब्दी का अरब यात्री सुलेमान लिखता है की बंगाल में एक प्रकार की इतना अच्छा कपडा बना जाता था जिसका वस्त्र एक अँगूठीन से पार कर पता था ,वह यह भी दवा करता है की उसने स्वयं अपनी आँखों से ऐसा कपडा देखा था | इनके अतिरिक्त मिटटी के बर्तन बनाने,धातु-पत्थर के सामान तैयार करने की कला भी विकसित थी | ें उद्योगों के विकास की मुर्तिया बड़े पैमाने में पाई गयी है |
मुद्रा व्यवस्था
विदेशी व्यापार के -पूर्व एशियाई देशों और चीन का विकास इस समय हुआ होगा व्यापार के विनियम का साधन क्या था यह स्पष्ट परन्तु धर्मपाल के एक अभिलेखों में द्रम नाम के सिक्के का उल्लेख मिलता हैं | परन्तु पालकालीन सिक्के प्राप्त नहीं हुई है | इससे स्पष्ट पालो के अधीन मुद्रा-व्यवस्था विकसित नहीं थी | सम्भवतः सेन शासको के समान पालों समय कौड़ी विनिमय का माध्यम था | मुद्रा अर्थव्यवस्था के अभाव में पालों के समय मुद्रा प्रचलन तथा व्यवस्था में विकास बड़े पैमाने पर नहीं हो सका |
शिक्षा एवं साहित्य की प्रगति
पालयुग शिक्षा एवं साहित्य के विकास के लिए विख्यात है | पाल राजाओं ने अनेक नए शैक्षणिक केंद्रों स्थापना की तथा शैक्षणिक संस्थाओं को उदारतापूर्वक दान दिए | इस समय के बौद्धविहार शिक्षा के बिख्यात केंद्र है | गोपाल ने औंदपूरी तथा धर्मपाल ने विक्रमशिला एवं सोमापुर महाविहारों की स्थापना की | थवकर्मशीला और नालंदा महाविहार विश्वविख्यात शैक्षणिक केन्द्र थे | पाल राजाओं ने इन्हे मुक्त हस्त से दान दिया | शिक्षा के विकास ने साहित्य विकास को भी प्रभावित किया | संस्कृति साहित्य में इस समय एक नई रीति का उदय हुआ जो गौड़ीय रीति के नाम से विख्यात हैं | रामपाल की जीवनी रामचरित की रचना की | चक्रपाणिदत्त ने चिकित्सासंग्रह तथा आयुर्वेददीपिका की रचना की | जीमूतवाहन की विख्यात रचनाएँ है |