*मुहम्मद गोरी का आक्रमण के कारण ,तथा प्रकृति एवं परिणामों का वर्णन*
महमूद गजनवी के आक्रमण से ज्यादा प्रभावकारी मुहम्मद गोरी का भारत आक्रमण था | महमूद गजनवी की तरह मुहम्मद गोरी सिर्फ लूट मार करके ही संतुष्ट होनेवाला नहीं था ,बल्कि भारत में वह एक राज्य की स्थापना करना चाहता था | गजनी साम्राज्य के पश्चात मध्य एशिया में गौर राजवंश का उदय हुआ | गौर पहले गजनी के सामंत थे ,परन्तु गजनी की शक्ति कमजोर पड़ने पर गौर ने अपनी स्वतंत्र सत्ता कायम कर लिया | शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी ११७३ ई ० में गजनी का शासक बना | मध्य एशिया की राजनीति से बाध्य होकर तथा भारतीय राजनितिक दुर्बलता से आकृत होकर उसने भारत पर आक्रमण आरंभ किया |
११७५ से १२०५ ई० के मध्य उसने भारत पर अनेक बार आक्रमण किए | गोरी के आक्रमण के समय भारत की राजनितिक दशा सर्वथा असंतोषजनक थी | उत्तरी भारत में अनेक स्वतंत्र राजपूत राज्य अस्तित्व में आ चुके थे ,जिनमे आपसी सद्भाव एवं मैत्री का सर्वथा अभाव था | पंजाब पर गजनी वंश का शासन था | सिंध और मुल्तान गजनी के प्रभाव से स्वतंत्र हो चुके थे | अतः गोरी ने सर्वप्रथम सीमांत-प्रदेश पर अपना नियंत्रण स्थापित करने का निर्णय किया |
भारत पर पहला आक्रमण - ११७५ ई० मेंगोरी का पहला भारत आक्रमण किया था | गोमल दर्रा पार करता हुआ वह मुल्तान जा धमका मुल्तान और उच्छ पर बिना किसी प्रतिरोध के उसने अधिकार कर लिया | उच्छ के पश्चात् वह गुजरात बिजय के लिए बढ़ा ११७८ ई ० में उसने राजपुताना के मार्ग से गुजरात पहुंचने की चेष्टा की | मार्ग में आबू पर्वत के पास चौलुक्यवंशी शासक मूलराज से उसका कड़ा संघर्ष हुआ |
इस युद्ध में गोरी बुरी तरह से पराजित हुआ | तथा किसी तरह वहां से गोरी ने अपना जान बचा कर भागने में सफल रहा | और गजनी चला गया |
राजपुताना - पराजय के बाद मुहम्मद गोरी ने यह बात अच्छी तरह से समझ ली की भारत के भीतरी भाग में प्रवेश करने का सबसे बढ़िया पंजाब ही है | अतः अपनी सेना का पुनः संगठन कर वह पंजाब की विजय के लिए निकल पड़ा |
११७९ ई० में उसने पेशावर पर आसानी से अधिकार कर लिया ,पंजाब में गजनी वंश का शासक खुसरो मलिक मुहम्मद गोरी का मार्ग रोक सका | लाहौर पर मुहम्मद गोरी की विजय अनेक सैनिक अभियनो के पश्चात् ही पूर्ण हो सकी | ११८१ ई ० में गोरी ने लाहौर पर अधिकार करने की बहुत कोशिश की पर सफल नहीं हो सका | ११८६ ई० में गोरी ने पंजाब के शासक खुसरव मालिक को पराजित कर तथा उसकी हत्या कर पंजाब पर अपना अधिकार कर लिया | उसके पूर्व ही वह स्यालकोट पर विजय प्राप्त कर चुका था | पंजाब विजय ने गोरी के हौसले बढ़ा दिए |
दिल्ली पर विजय -उसके भारतीय प्रभाव की सिमा चौहानो के राज्य तक पहुंच गई ,जो दिल्ली और अजमेर पर शासन करते थे | परन्तु वह अब गंगाघाटी और दिल्ली विजय की योजनाएँ बनाने लगा | लाहौर को केंद्र बनाकर उसने पुनः अपना विजय अभियान आरम्भ कर दिया | सबसे पहले उसने भटिण्डा दुर्गे पर आक्रमण कर उसे जित लिया | भटिण्डा ,दिल्ली , अजमेर के चौहान शासक पृथ्वीराज तृतीय या राय पिथोरा के अधिकार में था | वह एक शक्तिशाली शासक था ,गोरी के इस दुः साहस ने उसे क्रुद्ध कर दिया था अपनी सेना के साथ-साथ वह भटिंडा की और बढ़ा थानेश्वर के निकट तराइन के मैदान में दोनों सेनाओं की मुठभेड़ हुई | तराइन के प्रथम युद्ध ११९१ ई० ने गोरी के हौसले पस्त कर दिये बड़ी मुश्किल से गोरी ने युद्व से अपनी जान बचाकर भाग खड़ा हुआ,
इससे कभी मुसलमानो की सेना हिंदुयों के द्वारा इतनी बुरी तरह से प्नराजित नहीं हुई थी | गोरी के पलायन के पश्चात् पृथ्वीराज ने पुनः भटिंडा पर अपना अधिकार कर लिया |
पराजय होकर गोरी ने हर नहीं मणि ,पृथ्वीराज की अपमान का बदला लेने के लिए अवसर ढूंढता रहा | पृथ्वीराज पर दुबारा आक्रमण करने की पूर्ण उसने तैयारी कर ली उसने अपनी सेना में १२०००० सिपाहियों की भर्ती की जिसमे करीब १०००० घुड़सवार ,धनुधर थे | गोरी की आक्रमण सुनकर पृथ्वीराज ने भी तुर्क आक्रमणकारी से निबटने की तैयारी शुरू कर दी | उसने उतर भारत पर अनेक राजाओं को सनेश भेजकर सैनिक सहायता की मांग की | उसके आवाह्न पर करीब १५० राजपूतो राजा अपनी सेना के साथ पृथ्वीराज की मदद के लिए आ गए |
नहीं आने वालो में कन्नौज के राजा जयचंद था,जिसकी पृथ्वीराज से व्यक्तिगत दुश्मनी थी |
करीब ३००००० सैनिकों के साथ पृथ्वीराज युद्ध करने जा पहुँचा |
११९२ ई ० में तराइन का दूसरा युद्ध हुआ ,विशाल सेना के बावजूद गोरी के कुशल सैन्य संचालन एवं तुर्की घुड़सवारो की तेजी और दक्षता के कारण पृथ्वीराज पराजित होकर भाग खड़ा हुआ | परन्तु गोरी के सैनिकों ने पृथ्वीराज चौहान को गिरफ्तार कर लिया |
इस प्रकार गोरी की महत्वाकांक्षाएं बढ़ गई | और इस तरह से उसने भटिण्डा ,दिल्ली ,अजमेर कन्नोज जैसे बहुत भारत के कोने-कोने में वह अपना अधिकार कर लिया |
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